एम.ए. हिन्दी - प्रथम सेमेस्टर 

प्रथम प्रश्न पत्र - हिन्दी साहित्य का इतिहास

इतिहास ऐतिहासिक घटनाआंे और वृतान्तो का लेखा-जोखा ही नहीं प्रस्तुत करता, इतिहास का निर्माण भी करता है। इतिहास के स्वरूप को समझना सरल कार्य नहीं है। इतिहास से मनुष्य का संबध्ंा पुराना है। हमारा संस्कार, हमारा व्यवहार हमारी संस्कृति, हमारी नीति अतीत से अनुशासित एक अनवरत धारा है। अतीत के परिप्रेक्ष्य मंे वर्तमान को समझ सकते है। अतः विद्यार्थियांे के लिए यह सर्वाधिक उपयोगी पाठ्यक्रम है। 

द्वितीय प्रष्न पत्र - प्राचीन काव्य

हिन्दी के आदिकालीन काव्य अपनी पृष्ट भूमि में अपभ्रश के अवदान को पूरी तरह समेटे हुए है। प्रबंध मुक्तक आदि काव्य रुपों में रचित और अपभ्रश , अवहट्ट एवं देशी भाषा में अभिव्यंजित आदिकालीन साहित्य की परवर्ती कालो को प्रभावित करने में सक्रिया एवं संक्षम भूमिका रही है। इसके अध्ययन के बिना किसी भी काल का वास्तविक मूल्यांकन संभव नही है। अतः यह लोक जागरण और लोक मंगल का नवीन स्वर तथा भावत्मक एकता और सांस्कृतिक परंपरा को समझने के लिए उपयोगी पाठ्यक्रम है। 

तृतीय प्रष्न पत्र- आधुनिक गद्य साहित्य (उपन्यास, निबंध एवं कहानी)

छात्र-छात्राओं मंे नाटक एवं एकांकी के रसास्वाद की दृष्टि विकसित हुई। इनमे ं हिन्दी नाटक का स्वरूप, तत्व आदि मानदंडो के आधार पर समीक्षा की क्षमता निर्मित हुई। उनमंे हिन्दी के प्रतिनिधि उपन्यास, निबंध, कहानीकारांे का परिचय प्राप्त हुआ। उनकी कहानियो ं एव ं नाटको ं मंे निहित तत्वो ं से अवगत हुए। अच्छाइयो ं एव ं बुराइयांे को समझने की उनमंे चेतना जागतृ होगी। 

चतुर्थ प्रष्न पत्र - भाशा-विज्ञान

विद्यार्थियांे को भाषा विज्ञान के माध्यम से हिन्दी भाषा के व्यवस्थित आरै यथोचित प्रयोग का ज्ञान प्राप्त कराना। छात्राआंे मंे भाषा विज्ञान के वैज्ञानिक अध्ययन की दृष्टि से विश्व मंे फैली विभिन्न भाषाआंे का तुलनात्मक, ऐतिहासिक कालक्रमानुसार अध्ययन कराना उद्देश्य है। जिससे विद्यार्थियांे को विविध रूपांे का ज्ञान प्राप्त हो सके। विद्यार्थियों को भाषा के स्वरूप परिभाषा और विश्ेाषताआंे की जानकारी प्राप्त कराना इसका उद्देश्य है। 

एम.ए. हिन्दी - द्वितीय सेमेस्टर
प्रथम प्रष्न पत्र - हिन्दी सहित्य का इतिहास (आधुनिक काल)

हिन्दी भाषा के इतिहास और उसके विविध रुपों का ज्ञान होता है। हिन्दी का भाषा की स्थिति विस्तार और उसे भाषायी प़क्ष से विद्यार्थी परिचित होते है। भारत की प्रतिनिधि भाषा के रुप में हिन्दी के दायित्व को समझा जा सकता है। भाषा विज्ञान की दृष्टि से भविष्य में होने वाले विकास और परिवर्तन का अनुमान लगाया जा सकता है।

द्वितीय प्रष्न पत्र- मध्यकालीन काव्य

विद्यार्थियांे को मध्ययुग के कवियो ं के योगदान का परिचय प्राप्त हुआ। विद्यार्थियांे मंे साहित्यिक कृतियांे के शिल्प एव ं सौन्दर्य को देखने की दृष्टि विकसित होती है। इनमंे संत एवं भक्तांे के काव्य सौन्दर्य की जानकारी प्राप्त होती है छात्राआंे को हिन्दी साहित्य के प्रतिनिधि रचनाकारो ं का महत्व प्रदेय, प्रभाव आदि का ज्ञान प्राप्त होगा।

तृतीय प्रष्न पत्र - आधुनिक गद्य साहित्य

आधुनिक काव्य गद्य की विधाआंे पर आश्रित है यह मानव के मन और मस्तिष्क मंे अनेक प्रयाजे नांे को प्रस्तुत करता है। उन्ही ं भावनाआंे के आधार पर काव्य का सृजन होता है। इसमंे चिन्तन, मनन और रागात्मकता का प्रस्तुतीकरण कौशलपूर्ण ढंग से होता है। प्राकृतिक परिवेश मंे काव्य वैभव का भाव एव ं कला पक्ष इसमे ं गद्य साहित्य की विविध विधाआंे मंे अत्यन्त विशाल बन गया है। हमारी सांस्कृतिक चते ना को इसने अत्यन्त प्रभावित किया है। साहित्य के विद्यार्थी इससे लाभान्वित होते है।

चतुर्थ प्रष्न पत्र - हिन्दी भाशा

लोक मानस भाषा का व्यवहार अपनी जरूरतांे के मुताबिक करता है। संविधान मंे हिन्दी भाषा को राजभाषा का दर्जा दिया गया है। र्काइे  भी भाषा जनता के जितनेे करीब होती है, उनमंे जनभाषा बनने की उतनी ही सामथ्र्य होती है। भाषा का विकास जनता की राष्ट्रीय भावना के विकास का पत्रीक है। अतः यह पाठ्यक्रम विद्यार्थियांे के विकास मंे बहुत उपयोगी होगा। 

एम. ए. हिन्दी - तृतीय सेमेस्टर
प्रथम प्रष्न पत्र -भारतीय काव्य षास्त्र

काव्य शास्त्र के अध्ययन से साहित्य के मर्म और मुल्य की समझ विकसीत होती है। सामाजिक सांस्कृतिक परिवेश के साथ रचना का ज्ञान प्राप्त करने के लिए भारतीय काव्य शास्त्र का अध्ययन आवश्यक है। इसमें न केवल हिन्दी बल्कि संस्कृत के भी काव्यो का अध्ययन कराया जाता है। जिससे विद्यार्थी अपने काव्य के प्रति ज्ञान को समझ और परख सकें। 

द्वितीय प्रष्न पत्र - आधुनिक काव्य

साहित्य एक सामाजिक संस्था है इसलिए समाज मे ं परिवर्तन का अर्थ है साहित्य के स्वरूप आरै दृष्टिकोण मंे परिवर्तन। केवल हिन्दी कविता पर ध्यान दे ंतो उसमं े वीरगाथा काल, भक्तिकाल, रीतिकाल, भारतेदं ु युग, द्विवेदी युग, छायावाद, प्रगतिवाद, नई कविता एव ं समकालीन कविता जैसी विविध - काव्य दृष्टियाॅं परिलक्षित होती है। जीवनानुभूितयाॅ ं और उन पर पड़ने वाले तत्कालिक दबावो ं को कारगर ढंग से व्यक्त करने के लिए कविता आव‛यक है। अतः यह पाठ्यक्रम विद्यार्थियांे के लिए उपयागी है। 

तृतीय प्रष्न पत्र - प्रयोजनमूलक हिन्दी

भाशा जीवन की अनिवार्य सामाजिक वस्तु और व्यवहारिक चेतना है। जिसके दो मुख्य आयाम है - सौन्दर्य परक और प्रयोजन परक। भाषा के प्रयोजन परक आयाम का संबंध हमारी सामाजिक आवश्यकताओं और व्यवहारिक जीवन से है। इसके विविध आयामो से न केवल रोजगार या जीविका की समस्या हल होगी अपितु राष्ट्र भाषा का संस्कार भी दृढ़ होगा। 

चतुर्थ प्रष्न पत्र - भारतीय साहित्य

भारत में अनेक भाशाएॅ और साहित्य है। प्रत्येक साहित्य में मानव कल्याण के विचार विद्यमान है। अनेकता में एकता के इस राष्ट्र में सभी भाषाओं के साहित्य की जानकारी से विद्यार्थियों को भारतीय की झलक मिलती है। भाषा और साहित्य के प्रति समभाव उत्पन्न करने के लिए भारतीय साहित्य का अध्ययन अध्यापन होता है। 

एम. ए. हिन्दी - चतुर्थ सेमेस्टर
प्रथम प्रष्न पत्र - पाष्चात्य काव्य षास्त्र

भारतीय काव्य शास्त्र के साथ पाश्चात्य काव्य शास्त्र का ज्ञान होना साहित्य के विद्यार्थियो के लिए आवश्यक है। वर्तमान में साहित्य रचना के मानदण्ड सार्वदर्शिक व सार्व भोमिक हो चुके है। अतः पाश्चात्य काव्य शास्त्र का तुलनात्मक आध्ययन आवश्यक है। 

द्वितीय प्रष्न पत्र - छायावादोत्तर काव्य

हिन्दी साहित्य के इतिहास में छायोवादोत्तर काव्य का पृथक महत्व है। यह हिन्दी साहित्य के इतिहास , पवृत्ति और साहित्यिक अभिरुचियों को बताने वाला एक पडाव भी है। छायावादोत्तर काव्य के दिम्दर्शन से ही छात्र साहित्य की गति स्थिति और पवृत्ति से परिचित होते है। 

तृतीय प्रष्न पत्र  - पत्रकारिता प्रषिक्षण

प्रयोजनमूलक हिन्दी का महत्वपूर्ण पक्ष पत्रकारिता है। पत्रकारिता हिन्दी के व्यावहारिक एवं कौशल पक्ष को उजागर करता है। पत्रकारिता प्रशिक्षण में विद्यार्थियों भाषा कौशल और लेखन क्षमता की अभिवृद्धि होती है। पत्रकारिता प्रशिक्षण पाठ्यक्रम से हिन्दी की रोजगारपरकता स्वतः सिद्ध होती हैं । 

चतुर्थ प्रष्न पत्र - लोक साहित्य छत्तीसगढ़ी भाशा का साहित्य

जनपदीय भाषा एवं साहित्य के माध्यम से छात्राआंे को छत्तीसगढ़ की गौरवगाथा, एेितहासिकता, पारैणिकता का ज्ञान कराना है। छत्तीसगढत्री साहित्य की सामाजिक, धामिर्क , सांस्कृतिक गतिविधियांे का जीवंत दस्तावेज है। जनपदीय भाषा साहित्य के माध्यम से छत्तीसगढ़ी भाषा की विकास यात्रा का विस्तृत ज्ञान कराता है। विद्यार्थी छत्तीसगढ़ी साहित्य एवं साहित्यकारो ं का अध्ययन कर यहाॅं की रीति-रिवाज, रहन-सहन, खान-पान, संस्कृति का ज्ञान प्राप्त कराता है।